रीवा रियासत
एक विस्तृत ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक सिंहावलोकन
बघेल राजवंश, जिसे सोलंकी या चालुक्य वंश की एक शाखा माना जाता है, ने मध्य भारत के बघेलखंड क्षेत्र पर सदियों तक शासन किया। उनकी राजधानी पहले गहोरा, फिर बांधवगढ़ और अंततः रीवा रही। इस राजवंश ने न केवल दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य जैसे शक्तिशाली साम्राज्यों के उत्थान और पतन को देखा, बल्कि उनके साथ जटिल राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक संबंध भी स्थापित किए। बघेल शासकों ने कला, साहित्य और संगीत को उदारतापूर्वक संरक्षण दिया, जिसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण संगीत सम्राट तानसेन का महाराजा रामचंद्र के दरबार में होना है। यह पृष्ठ रीवा रियासत के गौरवशाली इतिहास, महत्वपूर्ण शासकों, पुरातात्त्विक धरोहरों, विदेशी शक्तियों के साथ संबंधों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करता है। नीचे दी गई तालिकाएँ इस विषय पर विस्तृत और तथ्यपरक जानकारी प्रदान करती हैं।
तालिका 1: प्रमुख बघेल शासक
यह तालिका बघेल राजवंश के कुछ प्रमुख शासकों, उनके अनुमानित शासनकाल, और उनके समय की महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक, या सांस्कृतिक घटनाओं को दर्शाती है। अधिक जानकारी के लिए 'विवरण' बटन पर क्लिक करें।
शासक का नाम
अनुमानित शासनकाल
मुख्य जानकारी
बघेल वंश के प्रवर्तक, गहोरा को राजधानी बनाया।
13वीं शताब्दी मध्य
राज्य का सुदृढ़ीकरण, जौनपुर सल्तनत से संघर्ष।
15वीं शताब्दी मध्य
बघेल शक्ति का चरमोत्कर्ष, कालिंजर पर अधिकार।
16वीं शताब्दी पूर्वार्ध
हुमायूँ को शरण, 'वीरभानूदय काव्यम्' में वर्णित।
16वीं शताब्दी मध्य
अकबर के समकालीन, तानसेन के आश्रयदाता।
16वीं शताब्दी उत्तरार्ध
राजधानी बांधवगढ़ से रीवा स्थानांतरित की।
17वीं शताब्दी मध्य
बुंदेला और मराठा आक्रमणों का सामना किया।
18वीं शताब्दी उत्तरार्ध
1812 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि।
19वीं शताब्दी पूर्वार्ध
1857 में ब्रिटिश समर्थक, 'स्टार ऑफ इंडिया' उपाधि।
19वीं शताब्दी उत्तरार्ध
अंतिम शासक, भारत में विलय, सफेद बाघों के प्रजनक।
20वीं शताब्दी मध्य
तालिका 2: प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल
यह तालिका रीवा और आसपास के क्षेत्र के महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थलों, उनके कालखंड और प्रमुख विशेषताओं को दर्शाती है।
स्थल का नाम
जिला (वर्तमान)
कालखंड (अनुमानित)
मुख्य जानकारी
सोन नदी घाटी, प्राचीनतम मानव निवास।
मध्य प्रदेश
9000 ई.पू. तक
चावल की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य।
उत्तर प्रदेश
~6500-4500 ई.पू.
विशाल बौद्ध स्तूप परिसर, अशोककालीन।
मध्य प्रदेश
3री श. ई.पू. - 5वीं श. ई.
शुंगकालीन कला का उत्कृष्ट उदाहरण, वेदिका अवशेष।
मध्य प्रदेश
~दूसरी शताब्दी ई.पू.
अभेद्य दुर्ग, गुप्तकालीन प्रतिमाएँ, बघेल राजधानी।
मध्य प्रदेश
रामायणकालीन से बघेल काल
कल्चुरीकालीन शैव केंद्र, मत्तमयूर संप्रदाय।
मध्य प्रदेश
9वीं-12वीं शताब्दी ई.
बघेलों की बाद की राजधानी, महामृत्युंजय मंदिर।
मध्य प्रदेश
उत्तर मध्यकाल से आधुनिक
प्राकृतिक धरोहर, निकटवर्ती प्राचीन स्थल।
मध्य प्रदेश
प्राकृतिक विरासत
बघेलों की प्रथम राजधानी, प्राचीन दुर्ग के अवशेष।
उत्तर प्रदेश
~13वीं-14वीं शताब्दी
ग्रीष्मकालीन राजधानी, सफेद बाघ 'मोहन' का निवास।
मध्य प्रदेश
19वीं-20वीं शताब्दी
तालिका 3: विदेशी शक्तियों के साथ संबंध
रीवा रियासत के विभिन्न विदेशी शक्तियों और साम्राज्यों के साथ संबंधों और महत्वपूर्ण घटनाओं का एक संक्षिप्त विवरण।
शक्ति/साम्राज्य
कालखंड
संबंध का स्वरूप
मुख्य जानकारी
त्रिपुरी के कल्चुरी (पूर्ववर्ती शक्ति)।
पूर्व-बघेल काल
क्षेत्रीय उत्तराधिकार
खिलजी, तुगलक, लोधी वंश।
प्रारंभिक मध्यकाल
अस्थिर एवं चुनौतीपूर्ण संबंध
शर्की राजवंश।
मध्यकाल
प्रतिद्वंद्विता
गढ़ा-मंडला के गोंड शासक।
मध्यकाल
मिश्रित संबंध
बाबर से परवर्ती मुगल।
मध्यकाल से उत्तर मध्यकाल
सहयोग और अधीनता
महाराजा छत्रसाल और उनके उत्तराधिकारी।
उत्तर मध्यकाल
प्रतिद्वंद्विता और दबाव
नागपुर के भोंसले और अन्य मराठा सरदार।
उत्तर मध्यकाल
संघर्ष और आर्थिक बोझ
अमीर खान, चीतू पिंडारी जैसे सरदार।
अराजकता का काल
भयावह आक्रमण
सहायक संधि से विलय तक।
औपनिवेशिक काल
संरक्षण से अधीनता
स्वतंत्र भारत सरकार।
विलय का काल
एकीकरण
तालिका 4: प्रमुख साहित्यिक एवं ऐतिहासिक स्रोत
इस तालिका में रीवा और बघेलखंड के इतिहास व संस्कृति से संबंधित महत्वपूर्ण साहित्यिक, पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्रोतों का उल्लेख है, जो इस क्षेत्र के अतीत को समझने में सहायक हैं।
स्रोत का प्रकार
ग्रंथ/लेखक/स्थल
कालखंड
भाषा/माध्यम
मुख्य जानकारी
अभिलेख, सिक्के, स्मारक।
विविध कालखंड
भौतिक अवशेष
मुगलकालीन इतिवृत्त।
मध्यकाल
लिखित पांडुलिपियाँ
स्थानीय साहित्यिक रचनाएँ।
मध्य से आधुनिक काल
लिखित पांडुलिपियाँ
गजेटियर, रिपोर्ट, संधियाँ।
औपनिवेशिक काल
लिखित, मुद्रित
लोकगीत, लोककथाएँ।
मौखिक परंपरा
मौखिक
पेशवा दफ्तर के रिकॉर्ड।
उत्तर मध्यकाल
लिखित पांडुलिपियाँ
कबीर और अन्य संतों से जुड़ी परंपराएँ।
मध्यकाल से
मौखिक एवं लिखित
विदेशी यात्रियों के विवरण।
प्राचीन से आधुनिक
लिखित
विभिन्न कालों के सिक्के।
प्राचीन से आधुनिक
धातु अवशेष
रीवा दरबार के रिकॉर्ड।
आधुनिक काल
लिखित, मुद्रित
तालिका 5: सांस्कृतिक प्रभाव और विरासत
यह तालिका रीवा रियासत के प्रमुख सांस्कृतिक पहलुओं और उसकी समृद्ध एवं स्थायी विरासत को दर्शाती है, जिसने इस क्षेत्र को एक विशिष्ट पहचान दी है।
सांस्कृतिक पहलू
मुख्य बिंदु
विस्तृत जानकारी
बघेली का माधुर्य, हिंदी और संस्कृत की परंपरा।
बघेली लोकभाषा, हिंदी का प्रथम नाटक 'आनंद रघुनंदन'
मंदिर, किले, महल और मूर्तिकला की धरोहर।
गुर्गी-महसांव मंदिर, बांधवगढ़ किला, व्यंकट भवन।
तानसेन की कर्मभूमि, ध्रुपद गायकी, लोक परंपराएँ।
संगीत सम्राट तानसेन, बघेली लोकगीत, करमा-सैला नृत्य।
शैव, वैष्णव और शाक्त मतों का संगम।
मत्तमयूर शैव संप्रदाय, रामभक्ति, देवी उपासना।
सांस्कृतिक जीवंतता और सामुदायिक मेल-जोल।
होली (फाग), दीपावली, दशहरा, शिवरात्रि, नवरात्रि।
पारंपरिक बघेली स्वाद और स्थानीय उपज।
इंद्रहर, रिकमच, दाल-बाटी, सुंदरजा आम।
पारंपरिक परिधान और अलंकार की शैली।
धोती-कुर्ता, साड़ी, चाँदी के गहने।
जाति व्यवस्था, संयुक्त परिवार और ग्राम पंचायत।
सामंती प्रभाव, संयुक्त परिवार, पंचायती राज।
सफेद बाघ की भूमि, समृद्ध जैव विविधता।
सफेद बाघ 'मोहन', बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान।
दरबारी संरक्षण और आधुनिक शिक्षा का प्रसार।
दरबार कॉलेज (टी.आर.एस.), संस्कृत पाठशालाएँ।