रीवा रियासत
इतिहास के पन्नों से एक शाही सफर
बघेल राजवंश ने बघेलखंड क्षेत्र पर सदियों तक शासन किया। उन्होंने दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के उत्थान-पतन को देखा और कला, साहित्य व संगीत को उदारतापूर्वक संरक्षण दिया। चलिए, इतिहास की इस रोमांचक यात्रा पर निकलें और रीवा रियासत के गौरवशाली अतीत और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के रहस्यों से पर्दा उठाएँ।
प्रमुख बघेल शासक
व्याघ्रदेव, गहोरा
व्याघ्रदेव थे। उन्होंने 13वीं शताब्दी में उत्तर भारत की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर गहोरा को अपनी प्रारंभिक राजधानी बनाया और इस वंश की नींव डाली।
व्याघ्रदेव, जिनका संबंध गुजरात के वाघेला शासकों से था, ने 13वीं शताब्दी में सबसे पहले मारफा के किले पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने गहोरा को अपनी राजधानी बनाकर एक नए राजवंश की स्थापना की, जिसे बाद में उन्हीं के वंश के नाम पर 'बघेलखंड' कहा गया।
रामचंद्र बघेल
संगीत सम्राट मियां तानसेन, सम्राट अकबर के दरबार में जाने से पहले, रीवा के महाराजा रामचंद्र बघेल के दरबारी गायक थे। यहीं पर उनकी संगीत प्रतिभा को वास्तविक सम्मान और निखार मिला।
महाराजा रामचंद्र बघेल कला और संगीत के महान संरक्षक थे और उनका शासनकाल सांस्कृतिक दृष्टि से स्वर्ण युग माना जाता है। विश्व प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन प्रारंभ में इन्हीं के दरबार की शोभा थे। तानसेन की ख्याति सुनकर ही अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल होने के लिए रीवा से आगरा बुलवाया था।
राजधानी, संस्कृति एवं समझौते
महाराजा विक्रमादित्य
महाराजा विक्रमादित्य ने 1618 ई. में रीवा शहर की स्थापना की। शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह द्वारा गहोरा को नष्ट कर दिए जाने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से राजधानी को रीवा स्थानांतरित किया गया।
गहोरा पर लगातार हो रहे हमलों, विशेषकर सलीम शाह सूरी द्वारा किए गए विनाश के बाद, महाराजा विक्रमादित्य (1593-1624) ने एक सुरक्षित राजधानी की आवश्यकता महसूस की। उन्होंने 1618 ई. में बिछिया और बीहर नदियों के संगम पर रीवा नामक नए शहर की नींव रखी और इसे अपनी राजधानी बनाया।